
आज कल जब ज़िंदगी की रफ़्तार इतनी तेज़ हो चुकी और वक़्त की कमी बहुत ज़्यादा, ऐसे में एंग्ज़ायटी यानी चिंता और डिप्रेशन यानी अवसाद की समस्या बहुत आम है। हालाँकि ये दोनों ही एक-दूसरे से अलग हैं पर लोग अक्सर एंग्ज़ायटी और डिप्रेशन को एक जैसा समझ लेते हैं। इनके बारे में लोग बात-चीत करने से कतराते हैं क्योंकि भारत का सामाजिक परिवेश इसकी खुल के इजाज़त अब भी नहीं देता और ऐसी समस्याओं पे बात करने से लोग शर्माते हैं। इस विषय पर जानकारी की कमी भी एक मुख्य कारण है कि चिंता और डिप्रेशन बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है। आप इस ब्लॉग को आख़िर तक पढ़िए ताकि एंग्ज़ायटी और डिप्रेशन जैसे गंभीर मानसिक समस्याओं को समझने में न केवल आसानी होगी बल्कि इससे आपके इलाज में भी फ़र्क़ पड़ेगा।
चिंता क्या है? सामान्य परिचय
चिंता एक ऐसी मानसिक अवस्था है जिसमें व्यक्ति को बार-बार डर, बेचैनी और घबराहट महसूस होती है। यह किसी आने वाले खतरे की आशंका से जुड़ी होती है, भले ही वह खतरा वास्तविक हो या काल्पनिक। ये आपके दिनचर्या पे भी प्रभाव डालती है और आप हर वक्त किसी न किसी बात से परेशान रहते हो। अगर आपको चिंता या एंग्जायटी है तो उसके कुछ मुख्य लक्षण हैं जो आपको भी महसूस होंगे जैसे कि हृदय गति तेज होना, पसीना आना, नींद में खलल, बार-बार सोचते रहना, और बेचैनी। अगर ये लक्षण आपको लगातार परेशान कर रहा है बिना किसी मुख्य कारण के भी तो ज़रूरी है कि आप किसी चिकित्सक से मिलें और इसके बारे में और जानें।
प्रमुख लक्षणों में शामिल हैं:
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लगातार घबराहट या डर महसूस होना
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नकारात्मक सोचें बार-बार आना
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नींद का न आना या बेचैनी
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सीने में जकड़न, तेज़ धड़कन, मांसपेशियों में तनाव
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हर छोटी बात पर ज़्यादा प्रतिक्रिया देना
डिप्रेशन क्या है?
डिप्रेशन केवल उदासी नहीं है, यह एक गंभीर मानसिक स्थिति है जो व्यक्ति की सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने की क्षमता को प्रभावित करती है। यह व्यक्ति को पूरी तरह निष्क्रिय बना सकती है। ये लंबे अंतराल तक आपको परेशान कर सकता है और इसमे अधिक लोगों को एक ऐसी मनोस्थिति का सामना करना पड़ता है जहां सिर्फ अकेलापन और दुख है। हलांकि वास्तव में हमें मनोस्थिति से अलग होती है. अगर आप भी ऐसे कुछ मेहसूस कर रहे हैं तो जानिए इसके प्रमुख लक्षण।
प्रमुख लक्षणों में शामिल हैं:
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निरंतर उदासी या खालीपन का एहसास
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किसी भी चीज़ में रुचि न होना
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थकान, ऊर्जा की कमी
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खाने या नींद के पैटर्न में बदलाव
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आत्मग्लानि, निराशा, खुद को बेकार समझना
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आत्महत्या के विचार या प्रयास
चिंता और डिप्रेशन के बीच प्रमुख अंतर
A. लक्षणों में अंतर:
चिंता :
जब कोई बहुत ज़्यादा घबराया रहता है या हमेशा डरता है कि कुछ गलत हो जाएगा। उसके मन में बेचैनी होती है और वह एक जगह टिककर नहीं बैठ सकता।
डिप्रेशन :
व्यक्ति उदास और सुस्त रहता है। उसे किसी चीज़ में मज़ा नहीं आता और जीने की इच्छा कमजोर पड़ जाती है।
पॉइंट |
चिंता (Anxiety) |
डिप्रेशन (Depression) |
मन की हालत |
घबराहट, बेचैनी |
उदासी, थकावट |
ऊर्जा |
बहुत हलचल |
बहुत सुस्ती |
व्यवहार |
चुप नहीं बैठना |
कुछ करने का मन नहीं करना |
B. कारणों में अंतर:
चिंता :
किसी खास चीज़ की चिंता होती है जैसे परीक्षा, नौकरी या रिश्तों की बात।
डिप्रेशन:
यह लंबे समय तक चलने वाले तनाव, कोई बड़ा सदमा, हार्मोन की गड़बड़ी या पारिवारिक कारणों से हो सकता है।
पॉइंट |
चिंता |
डिप्रेशन |
शुरुआत कैसे होती है |
खास स्थिति से |
गहरे मानसिक असर से |
समय |
अचानक शुरू हो सकती है |
धीरे-धीरे बढ़ती है |
वजह |
किसी घटना का डर |
भावनात्मक थकावट |
C. भावनात्मक असर:
चिंता :
लगता है कि कुछ बुरा होने वाला है, मन हमेशा डर में रहता है।
डिप्रेशन :
लगता है कि अब कुछ अच्छा नहीं होगा, अंदर से सब कुछ खत्म सा लगने लगता है।
पॉइंट |
चिंता |
डिप्रेशन |
मन की सोच |
"क्या होगा अगर..." |
"अब कुछ नहीं बचा" |
भावना |
डर और बेचैनी |
निराशा और खालीपन |
आत्मविश्वास |
डगमगाता है |
बहुत गिर जाता है |
D. सोच और व्यवहार में अंतर:
चिंता:
बहुत तेज़ बोलना, हर चीज़ को बार-बार जांचना, किसी काम में एकाग्र नहीं हो पाना।
डिप्रेशन:
धीरे बोलना, अकेले रहना पसंद करना, किसी से बात करने का मन नहीं करना।
पॉइंट |
चिंता |
डिप्रेशन |
बोलने का तरीका |
तेज़ और घबराया हुआ |
धीमा और उदास |
सोचने का तरीका |
"अगर ये हो गया तो?" |
"अब कुछ बदल नहीं सकता" |
व्यवहार |
बेचैनी, चिंता में चलना |
खुद में गुम हो जाना |
क्या चिंता और डिप्रेशन एक साथ हो सकते हैं?
हां, और ऐसा बहुत बार होता है। किसी को डिप्रेशन होता है तो उसमें चिंता के लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं, और किसी को Anxiety Disorder है तो वह धीरे-धीरे डिप्रेशन में बदल सकता है। दोनों का एक साथ होना इलाज को थोड़ा जटिल बना सकता है, लेकिन सही थेरेपी और सपोर्ट से इससे उबरना मुमकिन है।
चिंता और डिप्रेशन से बाहर निकलने के उपाय
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एक्सरसाइज और योग: रोज़ाना शारीरिक गतिविधि से मस्तिष्क में अच्छे रसायनों (dopamine, serotonin) का स्तर बढ़ता है।
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आहार: पौष्टिक और संतुलित आहार मूड को स्थिर रखने में मदद करता है।
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नींद: पर्याप्त और गुणवत्तापूर्ण नींद ज़रूरी है।
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समर्थन प्रणाली: परिवार, दोस्त या काउंसलर से बात करना लाभदायक होता है।
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थेरेपी: CBT (Cognitive Behavioral Therapy) और मेडिटेशन मानसिक स्थिति सुधारने में मदद करते हैं।
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डॉक्टर से परामर्श: ज़रूरत पड़ने पर दवाओं की सलाह विशेषज्ञ से लें।
मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने के उपाय
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अपनी सीमाओं को पहचानें और "ना" कहना सीखें
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सोशल मीडिया और नेगेटिव खबरों से ब्रेक लें
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अपने शौक के लिए समय निकालें
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मन की बातों को डायरी में लिखना
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स्वयं की तारीफ करें, खुद को समय दें
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मानसिक स्वास्थ्य को शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही महत्व दें
अगर आपको भी चिंता या अवसाद के लक्षण लग रहे हैं तो ज़रूरी है कि आप तुरंत अपने पास के रिहैबिलिटेशन सेंटर में किसी अच्छे साइकोलॉजिस्ट से संपर्क करें। हमारी राय में तो एथेना ओकस एक बहुत ही भरोसेमंद सेंटर है जहाँ अच्छे डॉक्टर्स मौजूद हैं आपकी तुरंत मदद के लिए। इसलिए अभी अपना अपॉइंटमेंट बुक करें ताकि इसका इलाज जल्द से जल्द हो सके।